सभी की सोच अलग-अलग होती है। कोई अच्छा सोचता है तो कोई बुरा और कई ऐसे भी होते है जो अच्छा और बुरा दोनों सोचते है। सोचने की प्रकिया को हम अन्तः मनन क्रिया भी कहते हैं, जो मन में होती है। कहा जाता है न... की मन के हारे हार है, और मन के जीते जीत। एक बार ठान लिया कि ये करना है तो करना है, चाहे कुछ भी हो जाए और ज़िंदगी में मुसीबतें तो आती ही रहती है इनसे क्या डरना, क्या घबराना। डरने घबराने के बजाय मन में एक ढृढ़ संकल्प कीजिये कि मैं इन छोटी छोटी मुसीबतों से घबराकर हार मानने वाला नहीं। मेरा जन्म ऐसे ही हारने के लिए नहीं हुआ है बल्कि इन चुनौतियों का डटकर सामना करने के लिए हुआ है ताकि मैं आगे बढ़ सकूँ, बढ़ता रहूँ अपनी मंज़िल की ओर । .. जिससे मंज़िल पाना आसान हो जाए .. और ऐसा लगे कि दुनिया मेरे कदमों में है।
ऐसा मैं सोचता हूँ की पारिवारिक सम्बन्ध हो , प्यार हो चाहे दोस्ती या कोई भी संबंध हो , बिना विश्वास के कोई मतलब ही नहीं है कि कोई भी संबध निभाया जाए। ये जितने भी संबंध होते हैं , बने या बन जाते हैं ये सभी विश्वास पर टिके होते हैं। इसलिए अगर आप कोई भी रिश्ता बनाये रखना चाहते हैं तो ज़रूरी है कि विश्वास कीजिये, विश्वास नहीं कर पाते हैं तो सीखिए क्योंकि विश्वास ही हर रिश्ते की नींव होती है।
विश्वास टूटने के दो ही कारण होते हैं - १ शक २ गलतफहमी। ये दो ऐसी मनःस्थिति है जो किसी भी रिश्ते में दरार डालने के लिए काफी है इसे जितनी जल्दी हो सके दूर कर लेना चाहिए।
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